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Monday, March 29, 2010

एक कसक है जो चुभ रही एक आग है जो धधक रही

एक कसक है जो चुभ रही

एक आग है जो धधक रही

सर्द हवाओं की ठिठुरन में

व़ोह धूप मैं नरमी ढूँढने की

पिघलते मोम सी नाज़ुक

वोह मन में दबी उलझन की

माँ के स्पर्श की कोमलता में

खिलखिलाते बचपन के चहकने की

ओस की बूँद सी शीतल

व़ोह झुलसी आह थमने की

आत्मा की संवेदना सी पवित्र

नींद में मुस्कान बिखेरने की

एक कसक है जो चुभ रही

एक आग है जो धधक रही


1 comment:

  1. this is amazing one. liked it....didnt know abt ur writings..good keep it up.

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