एक कसक है जो चुभ रही
एक आग है जो धधक रही
सर्द हवाओं की ठिठुरन में
व़ोह धूप मैं नरमी ढूँढने की
पिघलते मोम सी नाज़ुक
वोह मन में दबी उलझन की
माँ के स्पर्श की कोमलता में
खिलखिलाते बचपन के चहकने की
ओस की बूँद सी शीतल
व़ोह झुलसी आह थमने की
आत्मा की संवेदना सी पवित्र
नींद में मुस्कान बिखेरने की
एक कसक है जो चुभ रही
एक आग है जो धधक रही
this is amazing one. liked it....didnt know abt ur writings..good keep it up.
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