शौर्य की महिमा है ऐसी
गाथाएं भी यही है कहती
वीरगति जो नर दे जाए
सच्ची आहुती वही चढ़ाये
कायरों ने भी क्या कभी
रस्सी से तोडा पत्थर को?
शौर्यवान वो मानव जिसने
सारे बंधन तोडके जिसने
सच्ची लगन और आशा लिए
कदम बढ़ाये आकाश को छूने
वीर वही जो हँसते हँसते
विष को अमृत मानकर पीले
अन्यायों और दंशों के खिलाफ
जिसने उठाई बुलंद आवाज़
जिसने तोड़ी रुढियों की बेडिया
और रच डाला नया इतिहास
प्रताड़ित और कुंठित समाज में
जिसने उठाई बुलंद आवाज़
जिसने उठाया नारा ऐसा
जोश भरा था कुछ ऐसा
उठ गयी रूहों में ज़िन्दगी
जग गयी मृतकों में बंदगी
मैं,
मैं हु चंचल, सौंदर्य चितवन से परिपूर्ण कमल,
पर हूँ अभिलाषी
करना मेरी बात पर अमल
मुझे तोड़ देना वनमाली
उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढाने
जिस पथ जायें वीर अनेक
(इस कविता की अंतिम चार पंक्तियाँ श्री माखनलाल चतुर्वेदी की कविता से ली गयी हैं. यह वीर रस की कविता उनको समर्पित है)
bahut achcha likhtee hain aap
ReplyDeleteबेहतरीन!
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