
प्रियतमा राजगद्दी,
जबसे होश संभाला है बस तभी से तुम्हारे सत्ता-रुपी यौवन ने ऐसा लूट लिया है मानो छपरा के किसी गाँव से बाहुबलियों ने चुनावों के मौसम में मतपेटी लूट ली हो|
तुम्हारे आसन पर विराजमान होने का सपने तो मैंने बचपन में ही देख लिया था | इसलिए तो फरेब और फेरबदल जैसे राजनैतिक हथकंडे लड़कपन से ही अपनाने शुरू कर दिए थे| चालबाजी में परिपक्वता पाने और जालसाजी में दक्षता हासिल करने के बाद पता चला की मुख्यधारा में युवाओ का प्रवेश उतना ही वर्जित था जितना मंत्री जी के काफिले मैं किसी आम आदमी के दुपहिये का| यहाँ तो सफेदपोश होने के लिए सफ़ेद बाल होना बहुत ज़रूरी है| तुम्हारे वशीकरण के चलते मैंने भी हार न मानी| स्कूली शिक्षा ऐसे निपटाई जैसे रिश्वत का पैसा हो| कॉलेज की दहलीज पर जिस भी विषय में दाखिला लिया हो, मकसद तो तुम ही थी | बस अपना तन-मन-धन तुमपर न्योछावर कर चुका था|
खैर , तुम्हे पाने के उतावलेपन में हमें कॉलेज के लेक्चरों के बजाये छात्रनेता बनकर मीटिंग गठित करना ज्यादा तर्कसंगत लगा| तीन -चार साल की मेहनत और कपटी प्रयासों के चलते छात्र-संघ चुनावो में जोर आजमाने का मौका मिल ही गया| इसी औपर्चुनिटी का ही तो इंतज़ार था| अब क्या था, छात्रों की समस्याएं सुनी (हालाँकि सुलझाई नहीं), हाथ मिलाये, छप्पन भोग कराये, गोविंदा की फिल्मों के टिकेट बांटे , खूब पैसा उडाया | लेकिन अंत भला तो सब भला - छात्रनेता बन ही गए| पहली बार तुमसे विवाह क्या हुआ , हनीमून कभी ख़त्म ही न हुआ|
पढाई लिखाई से तो वास्ता तभी छूट गया था जबसे चुनावी घोषणा-पत्र में बेहतर शिक्षा व्यवस्था के झूठे वादे किये थे | अमां वायदे निभाना हम जैसे नेताओं के बस में कहाँ? खैर धीरे-धीरे राजनीतिक गलियारों में हमारे नाम की भी गूँज उठने लगी| पूरे गाजे बाजे के साथ पार्टी वालों ने ससुराल में स्वागत किया! भ्रष्ट नीतियों के चलते जल्द ही तुम्हारे नए नए रूपों का स्वाद चखा| कार्यकर्ता से युवा पार्टी की अध्यक्षता, कोषाध्यक्ष , प्रवक्ता, सचिव और प्रमुख नेता के ओहदे पर तुम्ही ने सहारा दिया| उगाही से, साख से, पहुँच से, जालसाजी और कालाबाजारी से अपने और पार्टी के लिए इतना धन कमाया की सभी ने मुझे हाथों-हाथ लिया|
चुनाव आये लेकिन पार्टी हार गयी| कोई बात नहीं| सिर्फ तुम्हारी गरिमा बनाये रखने के लिए दल बदल लिया| दल क्या बदला, किस्मत ही बदल गयी| फिर क्या फर्क पड़ता है की विचारधारा ही बदल गयी हो! मार्क्सवाद हो या उपभोक्तावाद , राजनेता के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं| पहले एम.एल.ऐ फिर एम. पी. बने| जनता-जनार्दन के मसीहा| ताकत , पैसा, पहुँच और लाल -सलाम सभी मिला | बड़े-बड़े पोस्टरों पे हाथ जोड़े मुस्कान उकेरे खड़ा था, तुम्हारे ऊपर बैठने की चाह में|
भाषणों में कभी धर्मं-सम्प्रदाय के नाम पे उकसाया तो कभी विकास की बड़ी बड़ी डींगें हाकी, तो कभी विरोधी दल पर आरोप लगाये, कीचड उछाला | लेकिन जब चुनावो में किसी को भी बहुमत न मिला तो दो-चार दलों का गठबंधन बनाया और हो गए तुमपर आसीन| देश तो भगवन भरोसे से चल ही रहा था तो एक्स्ट्रा मेहनत की क्या ज़रूरत ?
हाँ कभी कभार भ्रष्ट होने के छींटे हमपर भी पड़े लेकिन सब तुम्हारी ही माया थी की टेबल के नीचे की कमाई का लोभ लोगों में जिंदा है और खूब फलता फूलता है | हमें इस लोभ का निजी फायदे के लिए भरपूर इस्तेमाल करना आता है | तुम तो हमारी हुई ही साथ ही पुलिस, कोर्ट-कचहरी, सेना और शासन-तंत्र को दहेज़ में ले लाई|
बस एक गलती हो गयी! मीडिया कब बेकाबू हो गयी पता ही नहीं चला| शराब और शबाब के साथ स्टिंग ऑपरेशन टीवी पर दिख गया| उनकी तो टी.आर .पी. बढ़ गयी पर मेरी सरकार ढेह गयी| इस्तीफ़ा दिया, सत्ता भी गयी साथ ही पुरानी दबी फाइल खुलवा दी गयीं |
आज जब हम जेल के इस स्पेशल एयर कंडीशंड रूम में बैठे यह प्रेम-पत्र लिख रहे हैं, तो आशा तो यही है की जल्दी ही बा-इज्ज़त बरी होकर तुम्हारी गद्दी पर फिर से बैठेंगे| यहाँ तो हर राजनेता का अतीत होता है और हर अपराधी का भविष्य| हमारा तो अतीत भी तुम ही थी और भविष्य भी तुम ही हो| आशा करता हूँ तुम भी मेरे बिन ज्यादा दिन न रह पाओगी और सत्ता-सीन पार्टी का तख्ता -पलट कर दोगी |
सत्ताभिलाषी तुम्हारा प्रिये ,
पूर्व मंत्री-जी |
Replies from facebook notes-
ReplyDeletehttp://www.facebook.com/note.php?note_id=106598396055176
Good article. Great to know that you can articulate your views in English and Hindi, and quite forcefully.
Shahid Akhtar
आकांक्षा , सहमत हूँ , इस विषय पर आपके इन विचारों से ! काफी अच्छी तरह से व्यक्त किया है, और ख़ुशी हुई आपका यह लेख हिंदी में देखकर ! शुभकामनाएं !
~ सुयश
Suyash Deep Rai
Good article....
Aakash Arun
another K P Saxena in amaking?He was a great master to write on any topic.
Akhilesh Kumar Dixit
U hv captured d whole journey of a 'sattabhilashi'. Interestingly written.
ReplyDeleteaapka swagat hai hindi blog lekhan avam chittha jagat me
ReplyDeleteshubhkamnaaye
आपने अच्छा लिखा है...इसी तरह लिखती रहे।
ReplyDeleteआपको बधाई और शुभकामनाएं।
ब्लागजगत की खूबसूरत दुनिया में आपका स्वागत है।
सुपर्ब, यह तो आपने बड़ा जबरदस्त व्यंग्य लिख मारा !!! ताज़गी से भरा हुआ। बहुत ही जोरदार है। ब्लॉगजगत में तो स्वागत है ही, व्यंग्य जगत में भी बहुत बहुत स्वागत है। आशा है आगे भी अच्छे अच्छे व्यंग्य लिखती रहेंगी। कुछ पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी ज़रूर लिखें।
ReplyDeleteप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
wah! satire to t point
ReplyDeleteबहुत खूब आकांक्षा जी, एक बेहद सधी हुई भाषा में बहुत खूबसूरती से आपने विचार रखे हैं, जिनमें रचनात्मक कलात्मकता तो दिखती ही है, एक तीखा व्यंग्य भी दिखाई देता है। सुन्दर भाषा में सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति ! बधाई !
ReplyDeletebhaut acha likha hai vayng apnee
ReplyDeletebahut dino bad ek acha satire padhne ko mila hai. bhasa or roopak to kamal k hain hi lekin vyangya ki bhi khubsurati ko aapne kayam rakha or vyang k nam per aaj jo kuch bhi utpatang padha, dekha or likha ja raha hai usko aap chunoti dete lagte ho. plz keep it and all the best for yr writing.
ReplyDeleteआपकी लेखनी में असीम क्षमता दिख रही है। बड़ी सम्भावनाएं हैं आप के लेखन में। नियमित लिखती रहिए। इस ब्लॉग जगत को आप जैसी प्रतिभाओं की बहुत जरूरत है।
ReplyDeletebahut hi sundar lekh hai..
ReplyDeletebadhai ho..
bahut hi sundar lekh hai..
ReplyDeletebadhai ho..
अच्छा लेख
ReplyDeleteबधाई और शुभकामनाएं
अगे बाप गे....इतना धाँसू और फाडू व्यंग्य......अगे बाप गे....हम तो मर गए गे.......अब क्या कहें....क्या लिखें....इहो समझ नहीं आ रहा....अगे बाप गे....!!!
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
प्रियतमा राजगद्दी......
ReplyDeleteकाफी अच्छा लिखा हैं आपने .....बिलकुल सजीव वर्णन हैं सत्ता के प्रेमी का.
इसकी व्यंग्य शैली ने तो इसका रस और भी मोहक बना दिया हैं.
सराहनीय प्रयास. शुभकामना भविष्य के लिए.
धारदार, जानदार और शानदार भी...यूं ही लिखते रहिये
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