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Wednesday, November 17, 2010

हर गुस्ताखी में एक याद बन जाती है आपकी बदमाशियां

गर्माहट भरी मुस्कराती धूप में शर्माती लाल वो जाड़े की हर सुबह
आगोश में सिमटकर कानो में हलके से हंसाती वो कहानियां
जब साथ आँखें मूंदकर देखे सपनो से काफूर हो जाती ठिठुरन
और हर गुस्ताखी में एक याद बन जाती है आपकी बदमाशियां

हर रोज़ नयी तस्वीर बनाती हूँ आँखों की ओस से रंग चुराकर
रंगसाज़ से सजाती अल्हड बनाती मुझे आपकी झोली भर अशर्फियाँ
लफ्ज़ नहीं कर सकते इन्साफ बयां इस ख़ामोशी के इकरार का
क्योंकि हर गुस्ताखी में एक याद बन जाती है आपकी बदमाशियां

अपरिपक्व समझ दामन से बांधे दुनियापरस्ती से दूर तलक
मखमली एहसास से हथेली छुड़ाती उँगलियों की नटखट रवानियाँ
साथ गाये गीतों में ढूँढती हमारी मदमस्त परछाईयों की झलक
यूँ ही हर गुस्ताखी में एक याद बन जाती है आपकी बदमाशियां

होठों की कश्ती किनारों से दूर बहाती अरमानो की लहर
इठलाती है फलक पर डूबते सूरज की पलकों पर बिछी नादानियाँ
दिल में धडकने छुपाये कशमकश भरी संवेदनाओ को भेद रहे नज़रो के कहर
अब तो हर गुस्ताखी में एक याद बन जाती है आपकी बदमाशियां

इतने रूपों में विभोर करती पंख देकर उडान लेती ये मस्तानियाँ
आज फिर गुस्ताखी में एक याद बन गयी आपकी बदमाशियां

Monday, November 15, 2010

गुनगुने झागों में नाराज़गी जताती चुटकी-भर घुली मिठास
उस चीनी प्याले से उठ रही तन्हाई की खुशबू में
एक तरावट की गुंजाईश में बुदबुदाते नशे में लिपटे
आज फिर उमड़ आया प्यार अपनी ही नादानियों पर