आकांक्षा
मेरे मैं की संज्ञा...
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Monday, August 15, 2011
अथाह मंदाकिनी में उमड़ते इस वितस्ता के वेग
की सही-गलत लहरों से परे भी इन
गहराईयों के धरातल पर कुछ
अपाकर्षी कंकाल गढ़े हैं...
...
यथार्थ में एक कल्पनातीत तेज
से जलकर मरू होने का
बस एक अंतिम प्रयास बचा है
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