आकांक्षा
मेरे मैं की संज्ञा...
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Wednesday, January 12, 2011
अबूझ काल्पनिक परोक्ष दर्पण के भीतर झांकना चाहा है
अपने प्रतिबिम्ब में किसी अनजान को घूरते पाया है
शीशे की मनमानी है या मन के अंधेरो की छाया
इतने चेहरों को पारदर्शी कर न जाने कितने राजों को पीछे छुपाया है...
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