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Tuesday, April 12, 2011

आन्दोलनकारी कीड़ा

Photo: Joydeep Hazarika













हर जगह इतना शोर- शराबा | अभी तो इंडिया क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता है|  रात भर बाईक पर बैठे नौजवानों की हाय-फाये तो दिन में भी पटाखों की धूम  | अभी इसी फील गुड में हंसी हंसी में रेवोल्युशन भी हो गया | और हुआ तो कैसे हुआ !!! शुरू में हर जगह अन्ना प्रेम और अब हर जगह भर्त्सना| हमारे अधपके जनतंत्र (जिसका डंका हम पूरे विश्व में बजाते है)  को एक नया सुपर -हीरो मिलते मिलते रह गया! सरकार के चेक्क्स और बेलेंसेस के महा घोटालो पर किसी ने अनशन करने की ठानी तो वो जनता के मसीहा और गरीब बेसहारों के सर्वे सर्वा हो गया|  अब इसमें गलत भी क्या है ? यह लडाई जब सैधांतिक मूल्यों पर थी तो किसी के "पाक- साफ़" नाम की अगुवाई में करोडो का दर्द उठाने में डर कैसा?  मौकापरस्ती की दूकाने तो लगेंगी ही, मामला व्यापक हो गया है ...इलेक्टोरेट तक पहुँच गया है...वोटरों का सवाल है | जन समूह थोडा समझदार जान पड़ता है इसलिए हवा का रुख पहचान कर सारे पतंगे वहीँ उड़ लिए हैं| "पाक- साफ़" छवि का विच्छेदन अंत में करेंगे क्यूंकि मामला सिर्फ़ छवियों तक सीमित नहीं है-  सफेदपोशी और काले दानवों के बीच के कई धुंधले मायने भी सामने आने चाहिए -

1 अनशन ब्लैकमेलिंग है - अलोकतांत्रिक है , असंवैधानिक (रिक्त स्थान भर लीजिये जो उचित शब्द लगे )
देखिये चरित्र की बात कौन कर रहा है? दुशासन-रुपी सरकार? ब्लेकमैलिंग की परिभाषा सरकार दे रही है - इस दलील पर जानते हैं हरिशंकर परसाई सरकार पर व्यंग्य के कितने बाण छोड़ते? सरकार सीना ठोक कर कालाबाजारी, घूसखोरी और हाई -लेवल घोटाले करती है- हम सबके सामने! अगर किसी आम आदमी को क्रांतिकारी कीड़ा काट ले तो वो अकेला मानव-मात्र सरकारी तंत्र का क्या बिगाड़ लेगा| ज़हर ज्यादा चुभा हो तो हथियार भी उठा सकता है- माओवादी लाल पट्टी सर पे बांध सकता है - लेकिन ऐसा नहीं किया| मूल्यों के रास्ते, लोगों को साथ लेकर, शिष्टता की सड़क पर चलकर सरकार की नींद उड़ाई-असंवैधानिक क्या है ? वो सरकार जो जवाबदेही की जगह "conspiracy of silence " की चादर ओढ़कर किसी तीसरी शक्ति पर सारा आरोप मढने में महारत हासिल कर चुकी है- उससे अगर सड़क पर बैठकर, शुद्धिकरण का हाथ पकड़ सामने से जवाब माँगा जाये- तो क्या हर्ज़ है?

2 . जनलोकपाल विधेयक की मांग से क्या होगा? अगले ही दिन भ्रष्टाचार काफूर हो जायेगा?
क्या जन्म लेने के अगले दिन ही आप इतने विद्वान हो गए थे की आपको लगता है की यह संपूर्ण समाधान है? IPC की धारा 302 से हत्याएं तो नहीं रुकी या 376 से बलात्कारी पैदा होने से नहीं रुके| यह एक्ट - भ्रष्टाचार निवारक नहीं लेकिन दंडात्मक ज़रूर है (punitive not preventive )| अगर किसी मुद्दे को लेकर संगठित न हो तो लक्ष्य के अभाव में दरारें उभरने लगती है|
अन्ना का आंदोलन संदेहास्पद क्यों है? क्योंकि समर्थक संदेहास्पद हैं? या संदेह इस बात का है की इसका फायदा किसको पहुंचेगा? इस जन-कल्याण के पीछे ज़रूर कुछ है! लेकिन क्या? संदेह है की भ्रष्टाचार ही क्यूँ चुना- इतने गंभीर मुद्दे है - बाकि (???) मुद्दे पहले क्यूँ नहीं सुलझाये? इस भ्रष्टाचार को तो टीवी रेटिंग भी नसीब नहीं होती - ललित मोदी को बुलाना चाहिए था ग्लैमर डालने के लिए! तभी विश्वसनीयता बनती- अभी तो संदेह है ? लेकिन संदेह किसका है ? मेरा आपका या कुछ प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों का ?

3 . अगर पूंजीपति इन मांगो को सही कहें- तो दाल में कुछ काला है, अगर मीडिया गुणगान करे (इस पर फिर से बात करेंगे) तो सब अजेंडा सेट्टिंग है, ज़रूर इस संघर्ष के पीछे commercial value छिपी है | सब प्रायोजित है | जो प्रायोजित है वो गलत है| अगर किसी तरीके से कोई भ्रष्टाचार विरोधी बातें पोपुलर करा रहा है,या उसी एक ट्रेंड , तमगा या ब्रांड बना रहा है - तो यह सरासर उपभोक्तावाद है | गारंटी तो कोई ले की जनलोकपाल विधेयक कीटनाशक है और सत्ताधारी बचाव मास्क ढून्ढ रहे हैं  | लेकिन गारंटी तो व्यक्तिगत लेनी होगी | अब सामने कौन आये? चलो एक गांधीवादी को आगे करते है और पीछे से फायर हम करेंगे|  फ़ॉर्मूला हिट तो सब फिट  | आम आदमी का मुद्दा बन जाये खास - यह तो भ्रामक द्विभाजन है|

4 . यह सिविल सोसाइटी की जादुई छड़ी इंडिया को सोने की चिड़िया बनाएगी?
जितने मुंह उतनी बातें | मीडिया वाले समझदार हैं या बेवकूफ वो खुद भी नहीं जानते | सुबह जंतर - मंतर को तहरीर स्क्वेर बनाते है और अन्ना को महात्मा कहकर शाम तक U -TURN लेकर आन्दोलन को  फेसबूकिया करार और अन्ना को कैमरा हंगरी कहते है| कैमरा दिखाया ही क्यूँ था पहले? आजकल बात आ गयी है मिडल क्लास वालों पर| अब यह मिडल क्लास प्रजाति का कोई प्रवक्ता तो है नहीं , मीडिया उनके साथ विरले ही सैर सपाटे पर जाती है, तो क्या उनका आन्दोलनकारी होना अछूत है? अब उनकी तरफ से सफाई कौन दे| मीडिया तो सिर्फ यह दिखने में मशगूल है की वही लोग आन्दोलन में बैठे हैं जिनका पैसे देकर भी काम नहीं हुआ| लेकिन यह तो सोचा ही नहीं की घर से निकल अप्रैल की गर्मी को बर्दाश्त कर में ये माध्यम वर्ग बैठकर अपने लिए कौनसी रोटियां सेक रहा होगा? सड़क पर तो तभी बैठते हैं जब जागरण होता है, मिन्नत मांगनी होती है अभी यह हक माँगना मिन्नत से कम  है क्या? कुछ तो कारण रहा होगा की यह नौबत आ गयी | गरीब मूलभूत अधिकारों वाले भारत निर्माण के चमत्कारों की प्रतीक्षा (जैसे फ़ूड सिक्यूरिटी) कर रहा है और अमीर वर्ग जमा किये पैसे को उड़ाने का तरीका ढून्ढ रहा हैं| बीच की मिडल क्लास ही असली  भ्रस्टाचार की दुर्घटना का सच्चा भुक्तभोगी है| वो नहीं आयेंगे तो कौन आयेगा? अब सूचना क्रान्ति के सूर्योदय में फेसबूक / ट्विट्टर उनको आम से खास बना रहा है तो एलीट मीडिया को इससे क्या हर्ज़ ? क्रान्ति के माध्यम तो अब यही होंगे , यह हाल ही मैं विश्व्यापी संघर्ष के उदाहरणों से साफ है| इसमें किसी प्रकार की शरर्मिंदगी कैसी ? जब इन्टरनेट पर  इतना जनाधार है तो समय आने पर क्या यह सड़कों पर भी उतरेगा | कौन रोक पायेगा इन्हें ?
5 . जाते- जाते
अन्ना  या आन्दोलनकारी किसी बात पर गलत है तो ये आन्दोलन भी गलत है | अगर वहां भारत माता के चिन्ह है तो ज़रूर यह संघ का कियाधरा है| अन्ना समर्थक आरक्षण विरोधी हैं| आरक्षण विरोधी दलित विरोधी हैं आरक्षण समर्थक दलित समर्थक वरना नहीं| सरल निष्कर्ष हैं| अन्ना को नरेन्द्र मोदी पसंद  हैं| एक और वाल  - जवाब कहाँ  है? इरोम शर्मीला की याद किसीको नहीं आई?  इस बिल से उन्ही जातियों को फायदा होगा जिन जातियों के सदस्य ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य है| अब इस कमेटी में भी वंशवाद  है | रामदेव  के योग शिविर अभी Halt पर हैं- यह वंशवाद गंभीर  मुद्दा है , योग -गुरु  का हस्तक्षेप ज़रूरी है | भीड़ के साहस और मनोबल के साथ   दुर्भाग्यवश  घटना हो  रही  है | समाधन जल्दी निकालना होगा इस पहले की लोग उब जायें और अन्दर लगी आग बुझ जाये|

यहाँ सिर्फ एक छवि नहीं एक साथ एक बुलंद आवाज़ चाहिए| हम सबकी |