आज कुछ समां ऐसा है कि अपनी
गुस्ताखियों पर गर्दन झुक रही है
और जनाब की रूमानियत ने
शर्मसार कर दिया है
ऐसा भी क्या मर्ज़ और पागलपन है
कि कुछ लफ़्ज़ों में बताना नामुमकिन है
कि दर्द से आँखों के कोनों में ओस ने
पैर पसार लिए है
मेरी सुबह की उम्मीद करने से क्या
इतेफाक रखता है
रात की स्याही बिखेरने वाला
गुस्ताखियों पर गर्दन झुक रही है
और जनाब की रूमानियत ने
शर्मसार कर दिया है
ऐसा भी क्या मर्ज़ और पागलपन है
कि कुछ लफ़्ज़ों में बताना नामुमकिन है
कि दर्द से आँखों के कोनों में ओस ने
पैर पसार लिए है
मेरी सुबह की उम्मीद करने से क्या
इतेफाक रखता है
रात की स्याही बिखेरने वाला
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