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Sunday, January 30, 2011

यह रेसिलिएंस क्या होता है?

काफी अरसा हो गया है फेसबुकिया हुए | अब तो जैसे फसबुक ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गयी हो | नोटीफिकेशंस आते हैं: कोई फलां गाना गा रहा है, कोई ऑफिस में मक्खी मार रहा है, कोई बॉस पर भड़ास निकाल रहा है, किसी की प्रेमिका शादी को राज़ी नहीं हो रही, कोई बारिश में पकौड़ो का स्वाद चख रहा है तो कोई पार्टी में पहनी नयी ड्रेस की फोटो प्रोफाइल पर लगा रहा है| दुनिया नयी धुरी पर घूम रही है| हर कोई आप पर नज़र रखे है| आप भी उस gaze या नज़र के हिमाकती हैं, सबको अपने भीतरी संसार के दर्शन कराते है, बस एक क्लिक के साथ | खैर, काफी कुछ जान पड़ता है आपके बारे में फसबूक से| आपका दर्शन, सोच , समझ , विचार या विचारहीनता |

आजकल बड़े जटिल दिनों से हमारा देश गुज़र रहा है| भ्रष्टाचार के नए-नए अध्यायों से रोज़ अवगत हो रहे है| देश हमेशा की तरह भगवान भरोसे ही चल रहा है लेकिन फेसबुक पर इस दुर्भाग्यपपूर्ण स्थिति को 'like ' करने वालों की कमी नहीं है| हज़ार करोड़ों का कॉमनवेल्थ खेल घोटाला हमारे सामने होता है और हम मूक दर्शक बने एक टॉयलेट पेपर रोल को 12000 रुपये में बिकते सहन कर लेते है, ऐसे ही 2G घोटाला होता है और हम टाटा डोकोमो की नयी धुन को youtube पर like करते हैं क्योंकि 2G से हमें क्या? किसी और की जवाबदेही है| जवाबदेही तो तब बनेगी जब प्रश्न उठाया गया हो!

आदर्श इमारते बनायीं जा रही है और हम ठगे से खड़े हैं| मुख्यमंत्री ज़मीन घोटालों में लिप्त हैं लेकिन हम अपने घर के नीचे अपनी ज़मीन दबाये आराम से सो रहे है| महंगाई डायन कमर तोड़ रही है लेकिन बस सहे जा रहे हैं - जैसे पानी में डुबकी लगाये पीठ पर गीली रूई का बोझ कोई गधा उठा रहा हो| अपनी दुर्दशा का कारण हम outsource करने की कोशिश करते रहते है| कभी झगडालू बनके DTC बस में गाली गलोच कर दी तो कभी टीवी प्रोग्राम में SMS कर भ्रष्टाचार पर कमेन्ट भेज दी| सबसे प्रिय और आसान रास्ता है फसबूक पर रेसिलिएंस दर्शाने का | यह रेसिलिएंस क्या होता है? सहनशीलता? वह ताकत जो हमें चुप रहने पर मजबूर करती है? हमारा मध्यमवर्ग इस रेसिलिएंस के लिए ही तो दुनिया भर में मशहूर है| कुछ भी आज़मालो मगर टस से मस नहीं होता| सहता जाता है सहता जाता है| सहनशीलता सीमा लांघती जाती है, और मुंह बंद किये यह बेशर्म समाज अपनी मेहनत से कमाए पैसे पर होते कुकर्म अपनी आँखों के सामने देखते हैं|

सबसे ज्यादा दुःख होता है युवाओं की लाचारी पर! लाचारी कहूं या आलसीपन या खुद्दारी की कमी| काला धन स्विस बैंको में जमा है लेकिन जागरूक होने का सबूत हम यहाँ सिर्फ फसबूक status लिखकर करते हैं| असल में कुछ करते नहीं है| सारी ज़िम्मेदारी से मुक्त| बाकी सब चीजों के लिए इंतज़ार नहीं होता लेकिन देश के लिए कुछ करने का हौसला और समय अभी दूर है| सारा समय तो friends बनाने में निकल जाता है| मैं नहीं मानती की यह सहनशीलता है, यह सिर्फ और सिर्फ आलसीपन है| या बुजदिली| इस रेसिलिएंस का घड़ा कब भरेगा यह पता नहीं|

निराशावादी नहीं होना चाहती इसलिए इस लेख का अंत फेसबुक पर ही एक दोस्त की दी हुई चेतावनी के साथ कर रही हूँ:



"अगर आप यह पढ़ रहे हैं तो यह एक चेतावनी है आपके लिए| जो कुछ भी बकवास इस चेतावनी में पढेंगे वो आपकी ज़िन्दगी के कुछ और पलों को फिजुलखर्च कर देगी | कोई और बेहतर काम नहीं है आपके पास इसको पढने के अलावा? या आपकी ज़िन्दगी इतनी खली है की कोई बेहतर तरीका नहीं है जीवन यापन का? किसी सत्ताधारी के प्रभुत्व से इतना प्रभावित क्यूँ रहते हैं की उसको आदर और विश्वसनीयता प्रदान करते हैं? क्या वो सब पढ़ते हैं जो आपको पढना चाहिए? वोह सोचते है जो दूसरे आप पर थोपते हैं? वह खरीदते है जिसकी दूसरे आवश्यकता व्यक्त करते है? अपने घर से बहार निकालो! बेफिजूल की चीज़ें खरीद के घर मत भरो! टीवी बंद करो| एक लड़ाई शुरू करो! साबित करो की तुम जिंदा हो! सक्रिय हो! अपनी बची कुची मानवता की मांग करो, किसी सरकारी फाइल में आंकड़े बनने से पहले| मुक्त हो जाओ| चेतावनी दी गयी है|"

4 comments:

  1. नहीं सोच पा रहा हूँ की यहाँ क्या प्रतिक्रिया दी जाए ...काफी महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया हैं आपने यहाँ. हम फसबूक पर तो काफी कुछ लिखते हैं पर शायद सोचते बहुत कम हैं उन मुद्दों पे. तुम्हारी बात बिलकुल सही हैं मध्यम वर्ग अपनी दैनिक आवश्यकताओ में इतना लिप्त होता हैं की सब कुछ जान कर भी अनजान बना रहता हैं. अन्दर ही अन्दर सारी भावनाए समाप्त हो जाती हैं. मैं धन्यवाद दूंगा फसबूक जैसे मंचो की जहाँ लोग अपनी बातें कम से कम अपने भावो को व्यक्त तो कर सकते हैं. अगर ये एक शुरुआत हैं तो शायद जो आप चाहते हैं कल वो भी हो. इस भावना को एक नया नाम देना पड़ेगा क्योकि न तो ये बुजदिली हैं और न ही आलसीपन. मैं इसे सहनशीलता भी नहीं कहूँगा क्योकि यह एक प्रकार की नीरसता हैं अपने सामाजिक दायित्वों से...हम सबकुछ जान कर मौन बने रहना चाहते हैं. चाहे इसे समर्थन कहो या मौन अस्वीकृति.

    व्यंग्य काफी तगड़ा हैं और मिश्रित भाव लिए हुए हैं: नोटीफिकेशंस आते हैं: कोई फलां गाना गा रहा है, कोई ऑफिस में मक्खी मार रहा है, कोई बॉस पर भड़ास निकाल रहा है, किसी की प्रेमिका शादी को राज़ी नहीं हो रही, कोई बारिश में पकौड़ो का स्वाद चख रहा है तो कोई पार्टी में पहनी नयी ड्रेस की फोटो प्रोफाइल पर लगा रहा है.
    मैं आशावान हूँ, युवा हूँ, और स्वयम से ये अपेक्षा करता हूँ की मैं इस शब्द रेसिलिएंस का व्यापक अर्थ समझ सकूँ.

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  2. पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा, अच्छा लिखती हो| आशा है आगे और भी बेहतरीन लेख बढ़ाने को मिलेंगे| शुभकामनाएं|

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  3. hi!!
    Always wanted to read your post and finally read it today.
    As i was expecting, its awesome.

    And i agree with the fact that people are lazy around(a lot of times,me too), they fail to fight in the front and instead chose the facebook way to show that they care to be "सारी ज़िम्मेदारी से मुक्त|".

    If this is to continue, the things will worsen even more and we will be busy updating our status "दुनिया का अंत"

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  4. this one is good ... but i feel like i am ravish's blog in some parts. imitation is the best form of admiration akanksha ji ?

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